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भारत सरकार के विदेश मंत्री को देना पड़ रहा है तीखे सवालों का जवाब !

चर्चा में बना हुआ है भारतीय लोकतंत्र।

अक्षय अजय बेहरा ब्यूरो (हेड, छत्तीसगढ़), नई दिल्ली : एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने ऑस्ट्रेलिया गए भारतीय विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर को कुछ असहज सवालों का सामना करना पड़ा, जिनका उन्होंने तीखा जवाब दिया.

भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने अमेरिकी उद्योगपति और निवेशक जॉर्ज सोरोस को खतरनाक बताया है। ऑस्ट्रेलिया में आयोजित एक कार्यक्रम में जयशंकर ने दुनिया में लोकतंत्र पर बहस की जरूरत बताई। भारत के लोकतंत्र पर टिप्पणी करने वाले अमेरिकी निवेशक जॉर्ज सोरोस को लेकर भारतीय विदेश मंत्री ने काफी तीखे शब्दों का इस्तेमाल किया. उन्होंने सोरोस को ‘बूढ़ा, धनी और एक राय रखने वाला खतरनाक’ व्यक्ति बताया है।

जर्मनी में म्यूनिख सिक्योरिटी कॉन्फ्रेंस में अरबपति निवेशक सोरोस ने पिछले हफ्ते भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना की थी, उन्होंने कहा था कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है लेकिन नरेंद्र मोदी लोकतांत्रिक नहीं हैं। इस टिप्पणी पर भारतीय विदेश मंत्री नाराज नजर आए। सिडनी में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने कहा कि सोरोस के विचार खांटी “यूरो-अटलांटिक” विचार हैं, वह बूढ़े हैं, धनी हैं और एक ही राय रखने वाले खतरनाक व्यक्ति हैं क्योंकि ऐसे लोग जब-जब बोलते हैं तो वे ऐसा माहौल बनाने के लिए निवेश करते हैं.”

जयशंकर ने कहा कि दुनिया में लोकतंत्र पर विमर्श और बहस की जरूरत है और इस बात पर बहस होनी चाहिए कि नया संतुलन बनाती और यूरोपीय प्रभाव से निकलती दुनिया में किसके मूल्य ज्यादा लोकतांत्रिक हैं, उन्होंने कहा कि भारत में कैसा शासन होना चाहिए, यह भारत के मतदाताओं ने तय किया है। हमारे लिए यह चिंता की बात है। हम एक ऐसा देश हैं जो उपनिवेशवाद से गुजरे हैं। हम जानते हैं कि बाहर से होने वाली दखलअंदाजी के क्या खतरे होते हैं.”

विदेश मंत्री से पूछे गए तीखे सवाल:
जयशंकर ऑस्ट्रेलियन स्ट्रैटिजिक पॉलिसी इंस्टीट्यूट नामक थिंक टैंक द्वारा आयोजित एकदिवसीय सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए ऑस्ट्रेलिया में थे। अपने भाषण में उन्होंने वैश्विक अर्थव्यवस्था के सामने मौजूद खतरों को फौरन कम करने की जरूरत बताई। इससे पहले वह ऑस्ट्रेलियाई नेताओं से भी मिले।

जयशंकर से पत्रकारों ने भारत में बीबीसी के दफ्तरों पर आयकर विभाग के छापों को लेकर भी सवाल पूछे। बीबीसी ने हाल ही में एक डॉक्युमेंट्री दिखाई थी जिसमें नरेंद्र मोदी की गुजरात दंगों में भूमिका पर विमर्श था। भारत ने इस डॉक्युमेंट्री को ‘भारत विरोधी दुष्प्रचार‘ बताते हुए प्रतिबंधित कर दिया था। उसके कुछ ही दिनों बाद आयकर विभाग ने बीबीसी के दिल्ली और मुंबई स्थित दफ्तरों की तलाशी ली जो तीन दिन तक चलती रही। इस बारे में ऑस्ट्रेलियाई पत्रकारों ने डॉ. जयशंकर से सवाल पूछा तो उन्होंने भारतीय प्रधानमंत्री का बचाव कहते हुए कहा कि कुछ आलोचक भारत के मतदाताओं के जनादेश का सम्मान नहीं कर पा रहे हैं। उन्होंने कहा, “आज भी दुनिया में ऐसे लोग हैं जो मानते हैं कि उनकी परिभाषाएं, उनकी प्राथमिकताएं और उनके विचार सर्वोपरी हैं।”

चर्चा में भारतीय लोकतंत्र:
ऑस्ट्रेलिया में डॉ. जयशंकर की कही इस बात की विभिन्न समूहों में खासी चर्चा हुई है कि लोकतंत्र को सिर्फ यूरोपीय नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए। वह पहले भी कई मंचों से कह चुके हैं कि यूरोपीय लोकतंत्र ही शुद्ध लोकतंत्र नहीं है। सिडनी में उनकी दोहराई बात को ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर और टेक-पॉलिसी डिजाइन सेंटर की निदेशक जोहैना वीवर ने अहम भी माना था।

वीवर ने अपने ट्विटर हैंडल में लिखा कि यह बात डॉ. जयशंकर के भाषण का निष्कर्ष है। उन्होंने कहा, “दो निष्कर्ष हैं। पहला, किसका लोकतंत्र? किसके मूल्य? दुनिया अब कम यूरो-अटलांटिक हो रही है और सबको यह बात समझ नहीं आ रही है।”

न्यूलैंड ग्लोबल की कार्यकारी निदेशक और भारत-ऑस्ट्रेलिया संबंध पर काम करने वाली नताशा झा भास्कर कहती हैं कि डॉ. जयशंकर का यह दौरा इस बात को दिखाता है कि सत्ता के केंद्र पारंपरिक देशों से उभरती अर्थव्यवस्थाओं की ओर खिसक रहे हैं। वह कहती हैं, “यह एक ऐसा बदलाव है जिसमें भारत ना सिर्फ वैश्विक विमर्श में हिस्सेदार हैं बल्कि उसका आकार भी तय कर रहा है.”

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