रेडी टू इट से पर्यवेक्षको को अलग करना संघ का संकल्प –
समूह और कार्यकर्ताओं का अधिकारी करते हैं बचाव,पर्यवेक्षको पर निलंबन की कार्यवाही सामान्य बात
कोरोना संक्रमण के दौरान शासन के कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाले महिला एवं बाल विकास विभाग के पर्यवेक्षकों में इन दिनों जबरदस्त आक्रोश व्याप्त है। पर्यवेक्षक संघ का कहना है कि पर्यवेक्षको के उपर निलंबन की कार्यवाही कर देना, उन्हें कार्यालय संलग्न करना, पर्यवेक्षक को नोटिस जारी कर देना, विधि विरुद्ध उनका सेक्टर बदल देना विभागीय अधिकारियों के लिए अब सामान्य बात हो गई है। संघ का आरोप है कि पर्यवेक्षको की शिकायत पर उच्चाधिकारी आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और रेडी टू इट समूह के विरुद्ध कार्यवाही करने से बचते हैं जबकि कार्यकर्ताओं की शिकायत में पर्यवेक्षको पर निलंबन स्तर तक की कार्यवाही उनके द्वारा बहुत आसानी से कर दी जाती हैं।
संघ का कहना है कि एक पर्यवेक्षक के पास 40 से 60 कार्यकर्ता व सहायिका होते हैं ।कभी कभी रेडी टू इट कार्य को लेकर वैचारिक मतभेदों के चलते स्वार्थवश कार्यकर्ताओं के द्वारा पर्यवेक्षको की शिकायत उच्चाधिकारियों से की जाती है। उनकी शिकायत पर विभाग गंभीरता से काम करने लगता है जबकि पर्यवेक्षको की शिकायतों को दरकिनार किया जा रहा है।
बयान के अनुसार रेडी टू इट कार्यक्रम को लेकर कार्यकर्ताओ और पर्यवेक्षको के बीच मतभेद सामान्य हो चला है । इसलिए इस कार्यक्रम से पर्यवेक्षको को पूरी तरह से अलग रखने की मांग को लेकर पर्यवेक्षक संघ का एक प्रतिनिधि मंडल महिला एवं बाल विकास मंत्री और विभागीय अधिकारियों से भेंट करेगा ।
संघ के पदाधिकारियों रंजना ठाकुर प्रांताध्यक्ष, सचिव याचना शुक्ला, प्रमुख सलाहकार व राज्य कर्मचारी संघ के प्रांताध्यक्ष शशिकांत गौतम, प्रवक्ता विद्याभूषण दुबे ने साफ तौर पर कहा है कि मबाविवि को रेडी टू इट काम से पर्यवेक्षको को अलग कराना ही पर्यवेक्षक संघ का प्रमुख मुद्दा है। मांग पर विभागीय समर्थन नहीं मिलने पर संघ के द्वारा न्यायालय में याचिका दायर किया जा सकता है।