Chhattisgarh

छत्तीसगढ़ राजनीति-क्या बच गई है भूपेश बघेल की कुर्सी? उत्तरप्रदेश की जिम्मेदारी कद बढ़ाने वाला? क्या उत्तरप्रदेश की जाति समीकरण साधने की कवायद, आलाकमान क्यो कुछ बोलने से बच रहा ।

छत्तीसगढ़ राजनीति-क्या बच गई है भूपेश बघेल की कुर्सी? उत्तरप्रदेश की जिम्मेदारी कद बढ़ाने वाला? क्या उत्तरप्रदेश की जाति समीकरण साधने की कवायद, आलाकमान क्यो कुछ बोलने से बच रहा ।

छत्तीसगढ़ की राजनीति में मानो भूचाल आया है, बड़े नेता कुछ कहने से भले बचते नजर आते हो पर पूरी कांग्रेस दो खेमे में बटी नजर आ रही है,एक खेमा जिसमे अधिकांश विधायक मुख्यमंत्री के लिए लगातार दिल्ली कुछ कर रहे है तो दूसरा खेमा आलाकमान के तरफ से निश्चिन्त दिख रहा है ।
सबके मन मे बस एक ही सवाल मुख्यमंत्री रहेंगे या जायेगे ,इसी बीच UP Election 2022: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को वरिष्ठ पर्यवेक्षक नियुक्त किया है. यूपी में छत्तीसगढ़ कांग्रेस और बघेल की टीम बीते कुछ महीने से काम भी कर रही है. इस नियुक्ति का एक मतलब यह भी है कि कम से कम यूपी चुनाव तक तो बघेल की मुख्यमंत्री की कुर्सी सुरक्षित हो गई है. उत्तर प्रदेश कांग्रेस की प्रभारी प्रियंका गांधी हैं.
इससे पहले मुख्यमंत्री बघेल को असम विधानसभा चुनाव की जिम्मेदारी दी गई थी. माना जाता है कि बघेल ने तन-मन-धन से असम में पूरी ताकत झोंक दी, जिसकी वजह से कांग्रेस मुकाबले में आ गई. असम में छत्तीसगढ़ के 500 से ज्यादा लोग कई हफ्तों तक रहे और पूरा चुनावी प्रबंधन संभाला. बहरहाल कांग्रेस चुनाव जीत नहीं पाई. एआईयूडीएफ के साथ गठबंधन को इसकी वजह माना गया.
बघेल की इसी प्रतिबद्धता को देखते हुए पार्टी ने उन्हें यूपी की जिम्मेदारी दी है जहां कांग्रेस की हालत बेहद खराब है. 2019 में प्रियंका गांधी के महासचिव बनने के बाद से संगठन में मजबूती और नया जोश तो आया है, लेकिन इसके बावजूद यूपी में कांग्रेस चौथे नम्बर की पार्टी बनी हुई है. मुख्य मुकाबला बीजेपी और समाजवादी पार्टी के बीच माना जा रहा है. एसपी, बीएसपी और कांग्रेस के अलग-अलग लड़ने का फायदा बीजेपी को मिलता हुआ नजर आ रहा है.
बघेल के आने से पहले ही बघेल की टीम यूपी में सक्रिय है. सूत्रों के मुताबिक कई विधानसभाओं में छत्तीसगढ़ कांग्रेस के कार्यकर्ता काम शुरू कर चुके हैं. बघेल के करीबी राजेश तिवारी को इस साल की शुरुआत में यूपी का सह प्रभारी बनाया गया था. छत्तीसगढ़ मॉडल की तर्ज पर यूपी कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को बड़ी संख्या में प्रशिक्षण दिया जा रहा है. इसके तहत कांग्रेस कार्यकर्ताओं को बूथ प्रबंधन, कांग्रेस की विचारधारा, सोशल मीडिया का उपयोग को लेकर ट्रेनिंग दी जा रही हैं.

साथ ही ट्रेनिंग में आरएसएस-बीजेपी से लेकर समाजवादी पार्टी और बीएसपी जैसे प्रतिद्वंदियों के खिलाफ भी कार्यकर्ताओं समझाया जा रहा है ताकि पार्टी संगठन जमीन पर हर तरीके से मजबूत नजर आए. भूपेश बघेल ने प्रदेश अध्यक्ष रहते छत्तीसगढ़ में यही मॉडल अपनाया था जिसके परिणामस्वरूप 2018 में कांग्रेस की जबरदस्त जीत हुई थी.
धन-जन प्रबंधन के अलावा भूपेश बघेल की जाति को भी उनके यूपी पर्यवेक्षक बनाए जाने से जोड़ कर देखा जा रहा है. बघेल ओबीसी कुर्मी समुदाय से आते हैं, जिसके वोटर पूर्वी यूपी में बड़ी संख्या में हैं. बघेल को पर्यवेक्षक बनाना कुर्मी मतदाताओं को आकर्षित करने की कांग्रेस की रणनीति हो सकती है.
ऐसे में देखना होगा कि प्रियंका गांधी के साथ मिलकर बघेल यूपी में क्या कोई करिश्मा कर पाते हैं. अक्टूबर के दूसरे हफ्ते की शुरुआत में कांग्रेस यूपी में 12 हजार किलोमीटर की “प्रतिज्ञा यात्रा” शुरू करने जा रही है. इस दौरान प्रियंका गांधी की कई सभाएं होंगी जिसकी शुरुआत बनारस से होने जा रही है.

बघेल के आने से एक बात तय है यूपी में कांग्रेस को संसाधनों की कमी नहीं होगी. लेकिन सारा गणित गठबंधन के सवाल पर टिका है जिसको लेकर अभी तक सस्पेंस है.

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