भारत की पहली ट्रांसजेंडर जो बानी कॉलेज की प्रिंसिपल, जानिए मनाबी बंदोपाध्याय की कहानी।
अक्षय अजय बेहरा (ब्यूरो हेड, छत्तीसगढ़), कोलकाता : ये कहानी है पश्चिम बंगाल की ट्रांसजेंडर मनाबी बंदोपाध्याय की। जो पढ़-लिख कर कॉलेज प्रिंसिपल बनीं, मेल फीमेल जेंडर के लिए ये समझना भी बेहद मुश्किल है कि ट्रांसजेंडर होते हुए पढ़ाई कर, कामयाब होना कितना मुश्किल है।
मनाबी जून 2015 में नदिया जिले के कृष्णानगर महिला कॉलेज की प्रिंसिपल बनी थी। यह उपलब्धि हासिल करने वाली वह पहली ट्रांसजेंडर थीं। ट्रांसजेंडर का बचपन भी नदिया जिले में ही बीता, जहां उन्हें बहुत ज़िल्लतों का सामना करना पड़ा और उनके जीवन का सफर भी बहुत संघर्षपूर्ण रहा।
मनाबी के पिता को भी मिली धमकियां:
मनाबी बंदोपाध्याय ने जीवम में बहुत तकलीफ उठाई. उन्हें अनदेखा किए जाने के खिलाफ मनाबी ने लंबी लड़ाई लड़ी। उनके जेंडर की वजह से मनाबी के साथ-साथ उनके पिता को भी धमकियां दी जाती थी। लंबी लड़ाई के बाद उन्होंने गर्व और सम्मान के साथ अपने घर में वापसी की।
मनाबी ने बचपन से ही फेमिनाइन आदतों को तरजीह दी और उनमें लड़की होने के लक्षण दिखने लगे तो उनके घर वाले परेशान हो गए। वे चाहते थे कि वह काम करे और कमाए, क्योंकि वह दो बहनों में इकलौता बेटा था।
मुझे लड़का होने का नाटक करना पड़ता था: मनाबी
मनाबी ने जब स्कूली शिक्षा पूरी ही की थी उन्होंने दुविधा से लड़ने के लिए मनोचिकित्सक के पास जाने का फैसला किया। लेकिन मनोचिकित्सकों ने उसे इसके बारे में भूल जाने के लिए कहा। मनाबी ने अपने माता-पिता को बताया था कि “मैं घर में तो महिला थी लेकिन सड़कों पर पैंट-शर्ट पहननी पड़ती और आदमी की तरह व्यवहार करना पड़ता था। यह दुखद और अपमानजनक था, लेकिन मेरे पास कोई विकल्प नहीं था।”
तमाम रुकावटों के बाद बंगाली में किया एमए:
2003 में मनाबी ने सेक्स-चेंज ऑपरेशन कराने का साहस जुटाया, जिसकी कीमत 5 लाख रुपये थी। लंबे समय तक लगातार चलने वाली प्रक्रिया के बाद, काउंसलिंग के कई सत्रों से गुजरना पड़ा, आखिरकार मनाबी ने खुद को स्वतंत्र महसूस किया। शिक्षा के महत्व को समझा और अपनी सारी ताकत पढ़ने में लगा दी। तमाम रुकावटों के बाद उन्होंने बंगाली में एमए पूरा किया।
2015 में कृष्णानगर महिला कॉलेज की कॉलेज प्रिंसिपल बनीं माबिन:
माबिन पश्चिम बंगाल में पीएचडी पूरी करने वाली पहली ट्रांसजेंडर भी बनीं। जब मनाबी ने झारग्राम के विवेकानंद सेंटेनरी कॉलेज में आवेदन किया, तो उसे पुरुष लेक्चरर के रूप में आवेदन करने के लिए मजबूर किया गया। जल्द ही, वह लेक्चरर बन गईं और फिर वह ऐसा करने वाली पहली ट्रांसजेंडर थीं। फिर 2015 में माबिन नदिया जिले के कृष्णानगर महिला कॉलेज की प्रिंसिपल बनीं।