पहली महिला एनकाउंटर स्पेशलिस्ट शाहिदा परवीन की कहानी।
शाहिदा ने किया है कि खूंखार आतंकियों का सफाया।
अक्षय अजय बेहरा(ब्यूरो हेड, छत्तीसगढ़), दिल्ली: शाहिदा परवीन 1995 में पुलिस सब इंस्पेक्टर के तौर पर भर्ती हुईं थीं। स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप में शामिल हुई वे पहली महिला कमांडो थी। 1997 से 2002 के बीच उन्होंने राजौरी और पुंछ जिलों में हिजबुल और लश्कर के कई खूंखार आतंकियों का सफाया किया।
शाहिदा परवीन जब चार साल की थीं, तभी उनके पिता का इन्तेकाल हो गया। शाहिदा छह भाई-बहनों के परिवार में सबसे छोटी थीं। आमतौर पर देखा जाता है कि पिता की मृत्यु के बाद भाई-बहन अधिक होने के कारण भाइयों को महत्व देकर बहनों की पढ़ाई बंद कर दी जाती है, लेकिन यहां इसका उल्टा हुआ है। शाहिदा की मां ने किसी को भी उनकी पढ़ाई छूटने नहीं दी, बल्कि बेटों के साथ बेटी शाहिदा को भी खूब पढ़ाया। शाहिदा ने एक साक्षात्कार में कहा कि उन्होंने जम्मू के एक निजी स्कूल में शिक्षिका के रूप में काम करना शुरू किया। इसी बीच उन्होंने एक सरकारी स्कूल में शिक्षक की नौकरी के लिए इंटरव्यू भी दिया, लेकिन अनिच्छा से। फिर परिवार में किसी को बताए बगैर उन्होंने पुलिस भर्ती का फॉर्म भर दिया। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि, मां को उनकी इच्छा के बारे में पता था। शाहिदा रोज सुबह मैदान में दौड़ने जाती थी, लंबी कूद, ऊंची कूद का अभ्यास करती थी।
आतंकी को मारते समय हाथ कांपने नहीं चाहिए:
शाहिदा बोली कि पुलिस में भर्ती के बाद जीवन और मौत से नया साक्षात्कार हुआ। एक आतंकी हमले के बाद मैं अपने साथियों के साथ मौके पर पहुंची थी। एक ही परिवार के छोटे बच्चों और औरतों तक की हत्या कर दी गई थी। पहली बार ऐसा भयानक दृश्य देखा था। उस दिन मैंने घर आकर मां से कहा था- जिन्होंने निर्दोषों को मार डाला, वो अल्लाह के बारे में कुछ नहीं जानते थे। मां ने कहा था- तुम मुल्क से, वर्दी से प्रेम करती हो तो ऐसे लोगों का सबक सिखाने में तुम्हारे हाथ कांपने नहीं चाहिए।
जीवन के पहले ऑपरेशन के समय मुझे सूत्रों से खुफिया जानकारी मिली थी कि बड़ी संख्या में आतंकी एक गांव में मौजूद हैं। मैंने ऑपरेशन लॉन्च किया। टीम के साथ घेराबंदी की, लेकिन लड़कों ने उत्साह में फायर कर दिया। और आतंकी भागने लगे। हमने पीछा किया। सैकड़ों राउंड गोलियां दोनों तरफ से चलीं। लेकिन वो भाग निकले। मुझे लगा सीनियर्स क्या सोचेंगे। पहले ऑपरेशन में ही असफलता मिली थी। लेकिन सीनियर्स ने कहा कि अच्छी बात यह है कि तुम्हारी सूचना सही थी, यानी तुम्हारा नेटवर्क सही काम कर रहा है। इससे मुझे आत्मविश्वास मिला।
आउट ऑफ टर्न प्रमोशन से बनीं इंस्पेक्टिर:
जुलाई 2001 में गांव की एक लड़की ने एक घर में कुछ आतंकियों के छिपे होने की जानकारी दी थी। शाहिदा की टीम पूरी तैयारी के साथ पहुंची, लेकिन आतंकी भाग निकले। घर की तलाशी के दौरान कुछ नहीं मिला। लेकिन घरवालों के व्यवहार से शाहिदा को शक था कि आतंकी आसपास होंगे। उसके घर के पीछे खेतों से आवाज आने पर उसका शक यकीन में बदल गया। मक्के के खेतों में तलाशी लेने लगे तो अचानक एक आतंकी ने फायरिंग कर दी। फिर शाहिदा ने उसे मार गिराया। इसके बाद साल भर एक के बाद एक सफल ऑपरेशन किए गए। बाद में उन्हें आउट ऑफ टर्न प्रमोशन देकर इंस्पेक्टर बना दिया गया।
आतंकियों के खिलाफ 3 दिन तक चला था ऑपरेशन:
शाहिदा को राष्ट्रपति पुलिस पदक से नवाजा गया। यह एक ऑपरेशन तीन दिनों तक चला। इस दौरान उनके साथी ऑपरेशन के दौरान खुद ही खाना बनाते थे। और वह हमेशा अपनी टीम को लीड करती थी। उन्होंने कहा कि बेहद कठिन परिस्थितियों में वह 10 किलोमीटर पैदल चलीं और घंटों फायरिंग करती रहीं।उन्होंने कहा कि वह इसके लिए कभी नहीं थके। हमेशा टीम से पांच कदम आगे चलते थे।