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कम लागत ज्यादा कमाई, आप भी कर सकते हैं शुरू: जयपुर के नरेंद्र ने 6 साल पहले 30 हजार रु. से शुरू की, अब सालाना 4 लाख रु. कमा रहे मुनाफा

हम आपको मोतियों की खेती की पूरी प्रोसेस और मुनाफे का गणित बता रहे हैं, जिससे आप 25 से 30 हजार रुपए खर्च कर लाखों रुपए का मुनाफा कमा सकते हैं.

मोती की खेती: हम आपको मोतियों की खेती की पूरी प्रोसेस और मुनाफे का गणित बता रहे हैं, जिससे आप 25 से 30 हजार रुपए खर्च कर लाखों रुपए का मुनाफा कमा सकते हैं.कम वक्त और कम लागत में खेती से बेहतर कमाई करना हो तो मोतियों की खेती यानी पर्ल फार्मिंग बेहतर विकल्प है। पिछले कुछ सालों में इसका क्रेज बढ़ा है। देश के अलग-अलग हिस्सों में कई किसान मोतियों की खेती कर रहे हैं और बढ़िया मुनाफा भी कमा रहे हैं। जयपुर में रहने वाले नरेंद्र गरवा पिछले 6 साल से मोतियों की खेती कर रहे हैं। उन्होंने अपने घर पर ही इसका सेटअप तैयार किया है। फिलहाल वे ऑनलाइन और ऑफलाइन देशभर में मोतियों की मार्केटिंग कर रहे हैं। इससे हर साल उन्हें 4 लाख रुपए का मुनाफा हो रहा है।

आर्थिक तंगी और संघर्ष भरा रहा है नरेंद्र का सफर

नरेंद्र की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। पढ़ाई के साथ-साथ उन्हें काम भी करना पड़ता था। ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी करने के बाद कहीं नौकरी नहीं मिली तो उन्होंने कारपेंटर का काम करना शुरू कर दिया। कुछ सालों तक उन्होंने यही काम किया। इसके बाद अपने पिता के साथ मिलकर वे स्टेशनरी और किताब की दुकान चलाने लगे। यह काम उनका बढ़िया चला। अच्छी कमाई भी होने लगी। हालांकि जैसे ही लोग ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर मार्केटिंग के लिए शिफ्ट हुए, उनकी दुकान की रफ्तार धीमी पड़ने लगी, आमदनी न के बराबर रह गई।

पहली बार 90% से ज्यादा सीपियां मर गईं

नरेंद्र कहते हैं कि 2015 में मैंने तय कर लिया कि अब मोतियों की खेती करनी है और ट्रेनिंग के लिए भुवनेश्वर चला गया। वहां CIFA में मैंने 7 दिनों की ट्रेनिंग ली, मुझे मोतियों की खेती से जुड़ी हर जानकारी दी गई। इसके बाद मैं जयपुर लौट आया और 500 सीपियों के साथ घर पर ही मोतियों की खेती शुरू की। अपने पास तालाब के लिए जगह नहीं थी, इसलिए मैंने सीमेंटेड टब बनाए। चूंकि शुरुआत में बहुत अधिक प्रैक्टिकल जानकारी नहीं थी। इस वजह से मेरी ज्यादातर सीपियां खराब हो गईं, 500 में से 35 सीपियां ही जिंदा बच सकीं। तब कई लोगों ने मेरा मजाक भी उड़ाया था। हालांकि इसके बाद भी 70 मोती मैंने तैयार कर लिए और इसके लिए मुझे ग्राहक भी मिल गए।

नरेंद्र घर पर ही सीमेंट के टब बनाकर मोतियों की खेती कर रहे हैं। फिलहाल उनके पास 3 हजार से ज्यादा सीपियां हैं।

नरेंद्र कहते हैं कि साल 2015 में मुझे अखबार के जरिए मोतियों के खेती के बारे में जानकारी मिली। इसमें कम लागत में बढ़िया मुनाफे का जिक्र था। खबर पढ़ने के बाद इसको लेकर मेरी दिलचस्पी बढ़ी। उसके बाद मैंने इस संबंध में जानकारी जुटानी शुरू की। तब मुझे ओडिशा के भुवनेश्वर स्थित सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फ्रेश वाटर एक्‍वाकल्‍चर (CIFA) के बारे में जानकारी मिली, जहां मोतियों की खेती की ट्रेनिंग दी जाती थी।

पहली बार 90% से ज्यादा सीपियां मर गईं

नरेंद्र कहते हैं कि 2015 में मैंने तय कर लिया कि अब मोतियों की खेती करनी है और ट्रेनिंग के लिए भुवनेश्वर चला गया। वहां CIFA में मैंने 7 दिनों की ट्रेनिंग ली, मुझे मोतियों की खेती से जुड़ी हर जानकारी दी गई। इसके बाद मैं जयपुर लौट आया और 500 सीपियों के साथ घर पर ही मोतियों की खेती शुरू की। अपने पास तालाब के लिए जगह नहीं थी, इसलिए मैंने सीमेंटेड टब बनाए। चूंकि शुरुआत में बहुत अधिक प्रैक्टिकल जानकारी नहीं थी। इस वजह से मेरी ज्यादातर सीपियां खराब हो गईं, 500 में से 35 सीपियां ही जिंदा बच सकीं। तब कई लोगों ने मेरा मजाक भी उड़ाया था। हालांकि इसके बाद भी 70 मोती मैंने तैयार कर लिए और इसके लिए मुझे ग्राहक भी मिल गए।

आम तौर पर मोती तैयारी होने में एक साल का वक्त लगता है। एक सीपी से दो मोती निकलते हैं। सीपियों की सर्जरी के बाद मोती निकाला जाता है।

इसके बाद नरेंद्र ने एक बार फिर से CIFA का रुख किया। उन्होंने वहां के अधिकारियों से इस संबंध में बात की। तब CIFA के डायरेक्टर डॉ. एसके स्वैन ने नरेंद्र की मदद की और उन्हें ऐसी तरकीब बताई जिससे कम से कम सीपियों को नुकसान हो। इसके बाद उन्होंने एक हजार सीपियां लगाईं। इस बार उन्हें कामयाबी मिली और बहुत कम सीपियों का नुकसान हुआ। इस तरह नरेंद्र धीरे-धीरे मोतियों की खेती की प्रोसेस समझ गए और बढ़िया प्रोडक्शन करने लगे।

ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के जरिए कर रहे मार्केटिंग

नरेंद्र बताते हैं कि हमने सोशल मीडिया से अपनी मार्केटिंग की शुरुआत की थी। आज भी हम उस प्लेटफॉर्म का सबसे ज्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं। साथ ही हमने खुद की वेबसाइट भी शुरू की है। जहां से लोग ऑनलाइन शॉपिंग कर सकते हैं। कई लोग फोन के जरिए भी ऑर्डर करते हैं। उसके बाद हम कूरियर के जरिए उन तक मोती भेज देते हैं। इसके अलावा इंडिया मार्ट से भी हम अपनी मार्केटिंग कर रहे हैं। कोरोना के बाद भी 4 लाख रुपए का मुनाफा हुआ है।

फिलहाल नरेंद्र के पास 3 हजार सीपियां हैं। वे अभी 2 तरह की मोतियां तैयार करते हैं। एक गोल मोती और दूसरी डिजाइनर मोती। इसकी कीमत भी क्वालिटी के हिसाब से होती है। एक मोती की कीमत 200 रुपए से लेकर 1500 रुपए तक होती है। वे ब्रांड टू कस्टमर यानी B2C और ब्रांड टू बिजनेस यानी B2B, दोनों ही तरह से मार्केटिंग करते हैं।

ट्रेनिंग देकर कई किसानों की बदल चुके हैं तकदीर

नरेंद्र कहते हैं कि जब मैं खुद मोतियों की खेती अच्छी तरह से सीख गया तो मैंने इसकी ट्रेनिंग देनी शुरू की। ताकि गरीब किसानों को रोजगार मिल सके। कोरोना के पहले नरेंद्र जयपुर और देश के दूसरे हिस्सों के किसानों को कैंप लगाकर ट्रेनिंग देते थे, लेकिन अब वे ऑनलाइन मोड पर शिफ्ट हो गए हैं। वे वर्चुअली किसानों को पर्ल फार्मिंग की ट्रेनिंग देते हैं। अब तक 300 से ज्यादा किसानों को ट्रेनिंग दे चुके हैं। इनमें से ज्यादातर किसान मोती की खेती कर रहे हैं और इससे उन्हें अच्छी आमदनी भी हो रही है। इसके लिए नरेंद्र ने अल्खा फाउंडेशन नाम से एक NGO भी रजिस्टर्ड किया है, जिससे 250 से ज्यादा किसान जुड़े हैं।

CIFA के डायरेक्टर एसके स्वैन के मुताबिक मोतियों की खेती के लिए तीन चीजों का होना जरूरी है। पहली कम से कम 10×15 का तालाब होना चाहिए। जिसका पानी पीने लायक होना चाहिए। अगर आपके पास तालाब के लिए जगह नहीं है तो घर पर सीमेंटेंड टब भी बना सकते हैं। दूसरी चीज सीपी हैं, जिनसे मोती तैयार होता है। आप चाहें तो नदी से खुद सीपी निकाल सकते हैं या खरीद भी सकते हैं। साउथ के राज्यों में अच्छी क्वालिटी की सीपियां मिल जाती हैं। तीसरी चीज है, मोती का बीज यानी सांचा, जिस पर कोटिंग करके अलग-अलग आकार के मोती बनाए जाते हैं। यानी जैसा सांचा वैसा मोती।

कैसे बनता है मोती, क्या है इसकी प्रोसेस?

सीपी से मोती बनने में करीब एक साल का वक्त लगता है। इसके लिए सबसे पहले सीपियों को दो से तीन दिनों तक एक जाली में बांधकर अपने तालाब में रखा जाता है ताकि वे खुद को उस पर्यावरण के मुताबिक ढाल सकें। इससे उनकी सर्जरी में सहूलियत होती है। इसके बाद उन्हें वापस तालाब से निकाला जाता है। इसके बाद सर्जरी का काम शुरू होता है। यानी सीपी का बॉक्स हल्का ओपन कर उसमें मोती का बीज यानी सांचा डाल देते हैं। फिर उसे बंद कर दिया जाता है। इस दौरान अगर सीपी को ज्यादा इंजरी होती है तो उसका ट्रीटमेंट भी किया जाता है। सर्जरी के लिए मार्केट से आप उपकरण खरीद सकते हैं। कई लोग एक कॉमन स्क्रू ड्राइव और पेंच की मदद से भी सर्जरी कर देते हैं।

सर्जरी के बाद इन सीपियों को नायलॉन के एक जालीदार बैग में रखकर नेट के जरिए तालाब में एक मीटर गहरे पानी में लटका दिया जाता है। ध्यान रहे कि तालाब पर ज्यादा तेज धूप न पड़े। गर्मी से बचाने के लिए आप उसे तिरपाल से कवर कर सकते हैं। बरसात के सीजन में इसकी खेती करना ज्यादा बेहतर होता है। फिर इनके भोजन के लिए कुछ एल्गी यानी कवक और गोबर के उपले डाले जाते हैं। हर 15-20 दिन पर मॉनिटरिंग की जाती है। ताकि अगर कोई सीपी मरती है तो उसे निकाल दिया जाए। औसतन 40% सीपी इस प्रोसेस में मर जाती हैं।

कहां से ले सकते हैं मोतियों की खेती की ट्रेनिंग?l

ट्रेनिंग के लिए आप नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क कर सकते हैं। इंडियन काउंसिल फॉर एग्रीकल्‍चर रिसर्च के तहत एक नया विंग बनाया गया है, जो भुवनेश्वर में है। इस विंग का नाम CIFA यानी सेंट्रल इंस्‍टीट्यूट ऑफ फ्रेश वाटर एक्‍वाकल्‍चर है। एसके स्वैन कहते हैं कि PM नरेंद्र मोदी ने मन की बात में मोतियों की खेती का जिक्र किया था। इसके बाद से इस सेक्टर में लोगों की दिलचस्पी बढ़ने लगी है। वे कहते हैं कि कोरोना के पहले हम लोग एक हफ्ते की ट्रेनिंग देते थे।

इसमें मोतियों की खेती की पूरी प्रोसेस सिखाई जाती थी। इसके लिए किसानों से 8 हजार रुपए फीस रखी गई थी। किसानों को ट्रेनिंग के बाद सीपियां भी प्रोवाइड कराई जाती थीं। हालांकि अब हम लोग वर्चुअल ट्रेनिंग दे रहे हैं। इसकी फीस एक हजार रुपए है। अब तक 600 से ज्यादा लोगों को हम लोग ऑनलाइन ट्रेनिंग दे चुके हैं। इसके अलावा देश में कई प्राइवेट संस्थान और निजी लेवल पर भी इसकी ट्रेनिंग दी जाती है।

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